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गयी तेरी बुद्धि भ्रष्ट, गयी मेरी मति मार
लो भैया अब क्या करे सरकार?
मोहल्ले के नुक्कड़ पर छोटी सी पान की दुकान
वो मालिक, मैं ग्राहक, बस इतनी सी पहचान
मैं बोला भैया देना कम चूने का एक मीठा पान
कम चूने का नाम सुनकर उसने ली भौहें तान
बोला चूना तो खूब अभी सरकार लगा रही है
महंगाई के साथ जीएसटी की मार खा रही है
आपस की बहस में चली शब्दों की तलवार
ना मैं झुका, ना ही उसने मानी अपनी हार
लो भैया अब क्या करे सरकार ?
इतवार के दिन बैठा यूं ही पड़ोसी के पास
बोला भैया सुुनाओ क्या चल रहा है खास
वो बोला लो पढ़ो आप ये आज का अख़बार
आपसी रंजिश का लोग चुका रहे उधार
गौरक्षा के नाम पर हो रही मौतें निराधार
कहां है आपकी बड़बोली वो बातुनी सरकार?
उसकी आंखे लाल मेरा पारा 100 के पार
सारे पड़ोसी आग में घी डालने को तैयार
लो भैया अब क्या करे सरकार ?
शाम का समय दफ़्तर से घर को जाना
बीच सड़क कार का व्यक्ति से टकराना
हल्की घुटने की चोट और लहू का आना
पास खड़ी भीड़ ने पूछा नाम, जाति, ठिकाना
संयोगवश व्यक्ति जाति से दलित निकल गया
धर्म के ठेकेदारों को अब दलित मुद्दा मिल गया
भीड़ ने ड्राइवर पर लिया अपना गुस्सा उतार
आ गयी पुलिस करने दर्ज एफआईआर
लो भैया अब क्या करे सरकार?
चलती रेल में दो अजनबियों की वार्तालाप
आपस में साझा करते अपना-अपना विलाप
एक भाई बोला देश में अब अशांति बड़ी है
इंसानियत के बीच मज़हब की दीवार खड़ी है
एक ने इस्लाम का गुणगान किया
दूजे ने खूब गीता का बखान किया
तीसरे ने ले लिया बेवजह ही पंगा उधार
बोला मुझे भी है अभिव्यक्ति का अधिकार
लो भैया अब क्या करे सरकार?
सावन का महीना जा रहे भक्त बाबा अमरनाथ
सुरक्षा के बाद भी बस लगी आतंकियों के हाथ
कुछ भक्त चले गये तो कुछ रह गये शेष
आतंकी हमले की निंदा करता पूरा देश
ड्राइवर सलीम ने बहादुरी का काम किया
वीरता की प्रतिमूर्ति को सबने सलाम किया
राजनीति के शिकारियों को मिल गया शिकार
कर रहे तीखे-तेज अपने ज़ुबानी हथियार
लो भैया अब क्या करे सरकार ?
सर्दी की रात और रास्ता बिल्कुल सुनसान
ना किसी का घर ना नज़दीक कोई दुकान
मंद-मंद नशा शराबी बोतल का चढ़ना
डगमगाते कदमों से पथ पर आगे बढ़ना
अचानक हवाई रफ़्तार से कार का गुजरना
बेसुध शराबी का मौके पर बेमौत मरना
अगले सवेरे दुर्घटना पर जनता का हाहाकार
कुछ डंडे पुलिस के तो कुछ पत्थरों की बौछार
लो भैया अब क्या करे सरकार?
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