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जागों ए कृष्ण वंशजो! रखों लाज चक्र सुदर्शन की!
गौमाता नही ये नाक कटी है अटूट धर्म सनातन की!
खुद की रोटी से पहले रोज रोटी जिसकी निकालते हो!
कर कत्ल उसका खुद बना रहे राह अपने पतन की!
दशकों तक पिलाया दूध जिन आस्तीन के सर्पो को!
कीमत की है अदा बेरहमों ने अपने लालन पालन की!
सिंहासन से खटियाँ तक ले आयी जनता जिनको!
गाय नही कुल्हाड़ी मारी पाँव, हद हुई पागलपन की!
चीखें क्या सुनाई देगी सोती हुकूमत के बंद कानो को!
वतन की फ़िक्र नही बस इनको तो फ़िक्र सिंहासन की!
कब तक अंधे रहे “जीत”, कब तक आवाज़ दबाएँ हम?
खुद की ही कहते रोज, कब सुनोगे जनता के मन की?
लानत है उन हुक्मरानों के कड़ी निंदा के तीरों पर!
शहीदों के घर भेजी जिन्होने अर्थियाँ बिना गर्दन की!
कभी शत्रु मात देते हैं, कभी हम खुद से हार जाते हैं!
कभी लूटती आपस की राजनीति में आबरू मेरे वतन की!
देवी समझकर जिस नारी को नवरातों में पूजा जाता है!
इज़्ज़त आज दाँव पर है हरदम उस माँ,बेटी व बहन की!
मानवता के मस्तक पर कलंक का टीका रोज लगता है!
कहीं ये घटनाएँ संकेत तो नही इस सृष्टि के समापन की!
गौमाता के हत्यारों सुनो अब विनाश तुम्हारा निश्चित है!
कीमत तुम्हे चुकानी होगी, बहे कीमती लहू के कण कण की!
निर्लज्जों तुम्हारी करतूतों से आज धरती थर्र थर्र काँपी है!
काम घिनौना कर लिए, करो तैयारी अब खुद के कफ़न की!
अहिंसा के पालक है हम, कायरता इसे कतई ना समझों तुम!
होगा पता तुम्हे वीरगाथा आज भी अमर है रावण के दहन की!
$जितेंद्र अग्रवाल$
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