Menu
blogid : 24142 postid : 1316747

गुरमेहर कौर……दे दिमाग़ पर ज़ोर !

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
  • 49 Posts
  • 48 Comments

हे शारदे मां, हे शारदे मां ,अज्ञानता से हमें तार दे मां ……विद्या की देवी माँ सरस्वती की इस वंदना के तुरंत बाद एक राष्ट्रीय प्रतिज्ञा…. भारत मेरा देश है। सब भारतवासी मेरे भाई-बहन हैं । मैं अपने देश से प्रेम करता हूँ। इसकी समृद्ध एवं विविध संस्कृति पर मुझे गर्व है। मैं सदा इसका सुयोग्य अधिकारी बनने का प्रयत्न करता रहूँगा । मैं अपने माता-पिता, शिक्षको एवं गुरुजनो का सम्मान करूँगा और प्रत्येक के साथ विनीत रहूँगा। मैं अपने देश और देशवाशियों के प्रति सत्यनिष्ठा की प्रतिज्ञा करता हूँ। इनके कल्याण एवं समृद्धि में ही मेरा सुख निहित है। हिन्दुस्तान के हर विद्यालय में सुबह बच्चों से ये बुलवाया जाता हैं, मैने भी बचपन में अपने स्कूल समय में हर रोज ये वंदना और ये प्रतिज्ञा की हैं ! हालाँकि एक बात मुझे अभी भी खटकती हैं क़ि स्कूल समय में तो हम राहुल गाँधी की तरह अपरिपक्व अवस्था में होते हैं तब हमे इस प्रतिज्ञा का असली महत्व और उद्देश्य पता भी नही होता हैं फिर भी रोज हमसे ये प्रतिज्ञा करवाई जाती है और वही जब हम कॉलेज में आ जाते हैं एक परिपक्व नागरिक के तौर पर तब ये प्रतिज्ञा वाली परंपरा लुप्त हो जाती हैं हालाँकि तब हमे सबसे ज़्यादा इसकी ज़रूरत होती हैं क्योंकि तब हम इसका महत्व भी जान जाते हैं और इसका उद्देश्य भी ! आख़िर इस प्रतिज्ञा का गौण उद्देश्य अपने देश की अस्मिता और स्वाभिमान की लड़ाई के लिए अपने आपको पूरी तरह समर्पित करने से हैं, संपूर्ण भारत की एकता और अखंडता बनाएँ रखने में अपना योगदान देने से हैं, समस्त भारतवासियों के प्रति बिना किसी भेदभाव के प्रेम और आदर भाव से हैं ! लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है क़ि हम इस प्रतिज्ञा को भूलकर अपने संविधान में सिर्फ़ अपने अधिकारों को ढूँढते हैं, बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार इस तरह के कई अनेक अधिकार जिनकी हम अक्सर माँग करते हैं सिर्फ़ अपने संविधान का हवाला देकर ! जैसा क़ि आदरणीय अंबेडकर साहब ने अपार लग्न और मेहनत के बाद इतने विशाल और परिपूर्ण संविधान की रचना की जिसको पूरा पढ़ना शायद अपने जैसे कई नौजवानो के बस की बात नही जिनका आधे से ज़्यादा समय फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी जगह पर व्यतीत होता हैं ! मैने भी संविधान के महज कुछ अंश अपने स्कूल समय में सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में पढ़े हैं वो भी मजबूरियों के चलते क्योंकि इम्तिहान में उतीर्ण होना था ! लेकिन जहाँ तक मुझे याद हैं उस पुस्तक में नागरिक के मूलभूत अधिकारों के साथ साथ कुछ कर्तव्यों का भी उल्लेख था जो एक भारतीय नागरिक होने के नाते सबके बनते हैं ! तो सवाल ये उठता हैं क़ि आज की युवा पीढ़ी जिसमें गुरमेहर कौर जैसी शिक्षित बहने हैं उनको महज ये अधिकार ही क्यों याद रहते हैं, कर्तव्य वाली बातों से दिमाग़ क्यों हट जाता हैं उनका ! सुना हैं उसने अपने बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार का इस्तेमाल करते हुए बहुत सी ऐसी बातें बोली हैं जिनसे बाकी नागरिकों का खून खौल उठा और उन्होने भी जैसे को तैसे वाली कहावत यथार्थ करदी ! बहन अगर गोबर में पत्थर मारोगी तो छींटे वापसी में गोबर के ही गीरेंगे फूल तो बरसने से रहे ! बोलने की स्वतंत्रता हैं लेकिन ये तो नही क़ि कुछ भी बोलने की स्वतंत्रता हैं, अब उस बहन ने पहले तो अपने बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार का ग़लत इस्तेमाल कर लिया और जब दूसरे नागरिकों ने भी बदले में अपने इसी बोलने के अधिकार के चलते कुछ बोला तो बहन को बुरा लग गया और उसने तुरंत सरकार से अपने सुरक्षा के अधिकार की माँग कर ली, हालात हास्यास्पद हैं, आख़िर अधिकार इतने याद हैं उस बहन को लेकिन कर्तव्य एक भी याद नही ! वो जिस आज़ादी की बात का हवाला दे रही हैं अगर उसपे गौर करूँ तो फिर ये पुलिस का बंदोबस्त, ये देश की सीमा पर सेना का बंदोबस्त, ये अदालतों और न्यायालयों में न्यायधीशों का बंदोबस्त आख़िर किस लिए ? क्या सरकार पागल हैं जो इन पर इतना पैसा खर्च कर रही हैं, तब तो हर आदमी आज़ाद हैं जिसका जो मन हो वो वही करे हर एक को आज़ादी हैं ! मेरी भुजाओं में अपार दम हैं मैं किसी का भी किसी बीच चौराहे पर सर फोड़ दूं ये कहकर क़ि मुझे भी अपनी शक्ति प्रदर्शन का अधिकार हैं, मैं भी आज़ाद हूँ, कोई भी किसी के साथ कुछ भी ग़लत कर ले आख़िर उसे भी अपनी शारीरिक इच्छा पूर्ति का अधिकार हैं, फिर तो ये संविधान की, क़ानून व्यवस्था की, ये सरकारी प्रणाली की ज़रूरत ही क्या हैं ,हर कोई सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में अपने अधिकारों को याद कर लेगा, जियों फिर मज़े से, रिलायंस जिओ की तरह ! जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात ही होगी फिर ! क्या देश की सीमा पर खड़े सैनिकों ने ये किताबें नही पढ़ी हैं ? अनपढ़ लोग तो सेना में भी भर्ती नही किए जाते हैं, राजनीति में हो सकते हैं वो अलग बात हैं क्योंकि संविधान में लिखा हैं, विशाल और जटिल कामों को करने में कुछ ग़लतिया तो रह ही जाती हैं, अंबेडकर साहब से भी इस तरह की कुछ एक गिनी चुनी ग़लतिया रह गयी संविधान के निर्माण के समय में ! वो सैनिक तो कभी अपने अधिकारों की बात नही करते , क्या कर्तव्यों के निर्वाहन की ज़िम्मेदारी सब उनकी ही हैं जो देश के लिए शहीद तक हो जाते हैं लेकिन उनका परिवार कभी उफ़ तक नही करता ! अगर गुरमेहर बहन ने कभी अपने शहीद पिता के दिल में एक पल के लिए झाँक लिया होता तो शायद उसको कतई ये सब बोलना और कहना नही पड़ता जो वो आज कह रही हैं ! गुरमेहर बहन मानता हूँ तुम आज के अँग्रेज़ी समय में सफलता के सांकड़े रास्ते से निकलकर बुलंदियों तक पहुँचना चाहती हो, लेकिन बहन बुलंदी तक पहुँचने का रास्ता तो कम से कम सही चुनों, अपने पिता की सुंदर व अच्छी छवि को कम से कम बनाएँ तो रखो ! तुम उनका समर्थन करती हो जो भारत विरोधी नारे लगाते हैं, जो कश्मीर की आज़ादी माँगते हैं, जो आतंकवादियों के समर्थन में नारे लगाते हैं और फिर तुम मासूमियत के साथ इसे अपने बोलने का अधिकार बताकर विश्व शांति का पाठ पढ़ाती हो, अपनी सुरक्षा की गुहार लगाती हो, इससे पहले तुमने कभी ऐसी हरकत नही की तो तुमसे किसी ने देशभक्ति का सबूत माँगा ? नही माँगा ना ? लेकिन जब तुम ये देश के खिलाफ होने वालो का साथ देती हो तो तुम्हे अपनी देशभक्ति का अब सबूत देना पड़ेगा! तुम अपने पिता की देशभक्ति का हवाला देकर वंचित नही रह सकती ! उनकी बहादुरी और वीरता का सम्मान तुम चाहती हो वो नही हो सकता ! तुम्हे अपना परिचय देना पड़ेगा, अपनी देशभक्ति अब दिखानी पड़ेगी क्योंकि अब लोगो को तुम पर शक हैं आख़िर देश की बात हैं, क्या ये जो तुम कर रही हो इसके पीछे किसी और का हाथ हैं या तुम इतनी अपरिपक्व हो अभी तक के तुम्हे इतना भी नही मालूम कि देश के खिलाफ यहाँ कुछ भी सहन नही किया जाता, कुछ ही महीनों पहले जे एन यू में जो हुआ क्या तुम उस घटना से भी अंजान हो? तुमने प्रतिज्ञा का असली मतलब अभी तक समझा ही नही, तुमने तो सिर्फ़ ट्विंकल ट्विंकल लिट्ल स्टार पढ़ा और सुना हैं, प्रतिज्ञा का असली मतलब अपने पिता से सीखो, उनकी तरह के अन्य लोगो से सीखो जो दूसरो के सीने पर लग रही बंदूक की गोलियों को अपने सीने पर ले लेते हैं, जो प्राकृतिक आपदा के समय बंद रास्तों में भी अपने शरीर को बिछा कर रास्ता बना देते हैं, जो कश्मीर में आई बाढ़ में खुद डूब गये लेकिन दूसरो को पार करा दिया, जो आतंकवादियों से भरे भवन के बाहर ३-३ दिन तक बाज सी नज़र लगाएँ खड़े रहते है इस फिराक में कि कब दुश्मन दिखे और कब मैं उसे धराशायी करूँ ! कश्मीर की आज़ादी माँगने से पहले कल्पना में भी बस इतना सा सोच लिया होता कि अगर कश्मीर से तुम्हारे सैनिक भाई एक पल के लिए भी हट जाएँ तो दुश्मन कश्मीर का क्या हाल करेंगे ? तुम जिस विश्व शांति की अपील कर रही हो, वो शांति तुम्हे मिल रही हैं उन जवानों की बदौलत जिनके घर के चूल्हे अक्सर गम में खोएँ माँ बाप की वजह से बिन जले रह जाते हैं हर होली और दीवाली ! खुशी इस बात की हैं क़ि उम्मीद के मुताबिक इस बार भी देश विरोधी बाते सुनकर लोगो को खून खौला आख़िर रग रग में हिन्दुस्तानी देश भक्ति का खून बह तो रहा हैं, वरना वही दूसरी ओर अपनी बिरादरी का समर्थन करने राहुल गाँधी और केजरीवाल जैसे लोग मौका ढूँढते फिरते हैं घावों को कुरेदने का !
भारत माँ को देकर गाली
ना हौसला बढ़ाओ तुम गददारों का !
कर्तव्यों का भी पालन करो
ना ज़िक्र करो सिर्फ़ अधिकारों का !
तुम्हारा भी घर यही हैं “भारत”
और मुझे भी रहना है यहाँ
अपनी समझ से काम लो “जीत”
क्या बिगड़ना हैं भला बदलती सरकारों का !

जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh