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बस इतना सा ख्वाब हैं…..

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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अपराधों के अंधेरो में रोशनी से भरी एक शाम चाहिए !
जहाँ बनी हो दीवारें दुश्मनी की, वहाँ दोस्ती का एक जाम चाहिए !

हस्ती बनती नही दौलत और दवात की स्याही से
हस्ती जहाँ में बनाने की खातिर, अपनी एक पहचान चाहिए !

हल्की बहारों से डूब नही सकती गमों की कश्तीयाँ
इन्हे डुबाने के लिए खुशियों से भरा एक तूफान चाहिए !

झूठ की जमी पर नही चमकते सच्चाई के सितारे
इन्हे दिखाने के लिए अपना एक सच्चा आसमान चाहिए !

परख नही होती अच्छाई की चेहरो की बनावटों से
अच्छाई को तलाशने इंसाफ़ से भरा एक इम्तिहान चाहिए !

लग नही पाती छोटे इरादों से आसमान के सीढ़ियाँ
ज़मीं आस्मा मिलाने के लिए अपने इरादे महान चाहिए !

बह सकती हैं हर मुख से शब्दों की मीठी रसधार
बस इसे बहाने वाली अपनी मीठी ज़ुबान चाहिए !

हट सकता हैं फरेबी नकाब लोगो के चेहरो से
बेनकाब बेईमानों को करने, एक भयानक तूफान चाहिए !

रुक सकती हैं हैवानियत की हवा नेक कर्मों से
हैवानियत को इंसानियत में बदलने, हल्की सी मुस्कान चाहिए !

बँधती नही क़ानून से जुर्म के हाथों में जंजीरे
क़ानून से जुर्म छुपाने, आजकल सिर्फ़ दाम चाहिए !

मूड सकता हैं पहिया पाप का धर्म की ओर
घर घर में धर्म का पहरा ,बसा कण कण में भगवान चाहिए !

आशियाना था बरसों पहले जिस तरह का हमारा
अब मुझे वही आशियाना, ईमान और वही इंसान चाहिए !

जल जाएँ जिसमे जुर्म,झूठ और बेईमानी की अर्थियाँ
हस्ती अब भारत की बचाने, “जीत” ऐसा शमशान चाहिए !

जितेंद्र अग्रवाल “जीत”

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