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धन की बात…..

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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हर चीज़ को देखने के दो अलग अलग दृष्टिकोण होते हैं ! जहाँ शादियों के माहौल में ये नोट बंदी होने से कुछ इसे नकारात्मकता से देखते हैं वही मैं इस फ़ैसले को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख रहा हूँ क्योकि जैसा सर्वविदित हैं कि 80% शादियाँ आम परिवार वाले घरों में हैं और 20% शादियाँ बड़े परिवारों में हैं ! बड़े परिवार वालों की अच्छी साख होने से उनके यहाँ कोई दिक्कत नही आनी क्योंकि उनका कोई भी काम पैसो के चलते बाधित नही होने वाला ! शेष 80% आम परिवार वालें जिनकी सामान्य शादी को लेकर अलग सोच रहती हैं वो अपनी क्षमता से कही गुना ज़्यादा शादी में यह सोचकर खर्च करते हैं कि चार लोग क्या कहेंगे ? समाज क्या कहेगा ? शादी जीवन में एक बार आती हैं इस तरह की सोच के चलते उनको कुछ कर्ज़ करके शादी समाज की चलन के मुताबिक करनी पड़ती हैं ! चाहे उस कर्ज़ को चुकाने में उन्हे कुछ साल भरपूर मेहनत ही क्यों ना करनी पड़े ! इसी बीच ये नोट बंदी होने से वो अब कुछ कम अपनी सुविधा के अनुरूप खर्च कर सकते हैं जिनसे उनका ज़्यादा खर्च भी नही होगा और ज़्यादा कर्ज़ भी नही होगा ! साथ ही साथ यह चिंता भी नही रहेगी कि समाज क्या कहेगा और चार लोग क्या कहेंगे क्योंकि यह नोट बंदी की घोषणा और इससे पड़ने वालें प्रभावों से हर नागरिक वाकिफ़ हैं ! शादी के कुछ गौण उदेश्य होते हैं जैसे अग्नि के सामने सात फेरे संपन्न होना, दूल्हा दुल्हन के दोस्त रिश्तेदारों का परस्पर मिलना, वर वधू को आशीर्वाद और स्नेह रूपी उपहार देना और दो परिवारों का आपस में जुड़ना ! कम खर्च वाली शादी में भी ये सारे उद्देश्य सिद्ध हो सकते हैं इसलिए शादी वालें घरों के मेहमान और समस्त सदस्य माथे पर चिंता की लकीरे लाने की अपेक्षा हक़ीकत की खुशी जो नये रिश्ते बनने से होती हैं परस्पर मिलने से होती हैं उसे महसूस करे ! चिंता करने का जिम्मा अब राजनीतिक पार्टियों पर हैं क्योंकि उनका खाया पिया अब बड़ी तकलीफ़ के साथ निकल रहा हैं जैसे कुछ ज़्यादा मिर्ची वाली वस्तु खाने से दूसरे दिन सुबह की दैनिक क्रिया बड़ी दुखदायी होती हैं ! इस बुरे दौर में उनको सहानुभूति देने जनता भी उनके साथ नही हैं क्योंकि इन्होने जैसे कुकर्म आज तक किए उसके हिसाब से यह सज़ा तो इनके लिए बहुत कम हैं अच्छा होता कालेधन के साथ साथ इनका काला मन भी स्वच्छ कर पाते वर्तमान प्रधानमंत्री महोदय लेकिन अफ़सोस ये काम उनके वश में नही हैं ! एक कहावत यहाँ भलीभाँति सबको समझ आ रही हैं क़ि जैसी करनी वैसी भरनी ! बचपन में स्वाधीनता दिवस पर सुनता था कभी ये गीत ” जो बोएगा वही पाएगा, तेरा किया आगे आएगा, सुख दुख हैं क्या फल कर्मो का, जैसी करनी वैसी भरनी ! आज सही मायने में इसका अर्थ समझ आया हैं ! इसी बीच एक बहुत बड़ा हार्दिक धन्यवाद बेंक और पोस्ट ओफिस के कर्मचारियों को जिनकी बदौलत इतना बड़ा कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो रहा हैं कर्मचारियों के मुँह से निकलते ये शब्द नवनिर्मित भारत के सपने को साकार करने के लिए बहुत हैं क़ि खाना तो रोज ही खाते हैं भाई ये तो खाते रहेंगे लेकिन अभी बहुत काम बाकी हैं ! आज तक तो सरकार की गुलामी करते आए हैं अब जनता की असली सेवा कर रहे हैं जब जनता रात से कतार में खड़ी रह सकती हैं तो हम रात को काम नही कर सकते क्या ? ये देशभक्ति और सेवा का जज़्बा हर आदमी को अपने स्तर से बहुत उपर उठा रहा हैं हर शब्द जो देशभक्ति के लिए लोगो के मुँह से निकल रहा हैं ये भारतीय एकता और अखंडता बनाएँ रखने में बहुत सिद्धकारक साबित होने वाला हैं ! अब भले देश बदले या नही बदले मगर सोच ज़रूर बदलने वाली हैं देश का विकास चाहे हो ना हो मगर अच्छी सोच का विकास ज़रूर होने वाला हैं ! अब लोग वस्तुओं को छोड़कर इंसानों से प्रेम करने लगे हैं जो की जीवन का आधार हैं ! अंतिम बात सही वक़्त पर पिए गये कड़वे घूँट अक्सर बाकी की जिंदगी मीठी कर जाया करते हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई

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