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कोख में चीखती बेटी के दिल पर अब घाव गहरा हो गया हैं !
उसका रोना अब बेकार हैं जब समाज अपना बहरा हो गया हैं !
छिपा रखा हैं चेहरा उसने कोख के किसी कोने में
जाने कोनसे गुनाह किए उसने एक कन्या होने में
हरदम डरी डरी खामोश सी हैं वो नन्ही परी
जाने कब गला कट जाएँ, डर लगता हैं उसे सोने में
उसका पता लगाने की कोशिशे तमाम होती हैं
मुश्किलों भरी गर्भ में उसकी सुबह शाम होती हैं
जाने क्यों उसका कोई यहाँ रखवाला नही हैं
उसके दिल की क्यों कोई पूछने वाला नही हैं
झूठे ही लोग कन्या को देवी का नाम देते हैं
कभी लक्ष्मी कभी दुर्गा उपाधि तमाम देते हैं
सुनकर नाम ये झूठे जख्म फिर से उसका हरा हो गया हैं !
उसका रोना अब बेकार हैं जब समाज अपना बहरा हो गया हैं !
बेटी जब ओलम्पिक में मेडल कोई ले आती हैं
जब बेटी कोई सफलता के आकाश को छू जाती हैं
नन्ही मासूम कोख में ये देखकर जश्न मनाती हैं
अपने जिंदा रहने की खुशी में सब भूल जाती हैं
कल्पना में उड़ती कन्या पर अचानक कर वार दिया जाता हैं
मासूम सी कॅली को बड़ी बेरहमी से मार दिया जाता हैं
लड़ते लड़ते मासूम आख़िर शेतानों से हार जाती हैं
कहाँ जाता हैं क़ानून उस वक़्त और कहाँ सरकार जाती हैं
जाने कैसे खुद को लोग माफ़ कर लेते हैं
खून से रंगे हाथों को सॉफ कर लेते हैं
अपने स्वार्थ की खातिर इंसान हत्यारा हो गया हैं
उसका रोना अब बेकार हैं जब समाज अपना बहरा हो गया हैं !
कोख में चीखती बेटी के दिल पर अब घाव गहरा हो गया हैं !
उसका रोना अब बेकार हैं जब समाज अपना बहरा हो गया हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259
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