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सूर्योदय के संग जब दिन की शुरुआत होती हैं
सुहानी हवाओं से आसमाँ जमी की मुलाकात होती हैं
जिसमे वंदना ईश्वर की होती हैं
प्रभात फेरी गाँव शहर की होती हैं
संस्कारों की बाते जब कभी दादी मेरी कहती हैं
जहाँ हम घूमना बोलते हैं वही दादी उसे प्रभात फेरी कहती हैं !
कंचन काया को जिससे आराम रहता हैं
मिलने वालो की ज़ुबाँ पर राम राम रहता हैं
पावन प्रेम का जिससे नित विस्तार होता हैं
शांत सरल सुखी जीवन का जो मूल आधार होता हैं
मनको की तरह जुड़ जुड़ के जो एक माला बन जाती हैं
ईर्ष्या बैर सब दूर जिंदगी आनंद की मधुशाला बन जाती हैं !
कदम से कदम मिलते हैं एक सुंदर सा समाज बन जाता हैं
सुबह सुबह सबसे मिलना मधुर जीवन का राज बन जाता हैं
रोज रोज आनंद के अवसर आते रहते हैं
हृदय भीतर उर्जा के समंदर जाते रहते हैं
आलस दबे पाँव कही कोसों दूर भाग जाता हैं
अच्छे सच्चे उपदेशों से सोया इंसान जाग जाता हैं
अंत नही इसकी महिमा ये तो खुशियों का भंडार हैं !
हैं प्रभात फेरी में प्रकाश सच्चा, बाकी तो बस अंधकार हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259
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