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सही श्रदांजलि…..

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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जैसा क़ि एक परम्परा हैं क़ि अपने हिन्दुस्तान में किसी के मरने के उपरांत एक बैठक का आयोजन होता हैं जिसमे रिश्तेदार दोस्त और पड़ोसी शरीक होते हैं और मृतक परिवार के सदस्यों के साथ छोटा सा वार्तालाप किया जाता हैं जिसमे थोडी सहानुभूति और दिलासा देने के साथ साथ मृतक व्यक्ति की प्रशंसा की जाती हैं ! इसी वार्तालाप के बीच कुछ मान मनुहार की रस्म भी हो जाती हैं जैसे चाय, बीड़ी, सिगरेट आदि ! उस बैठक को तीये की बैठक के नाम से जाना जाता हैं ! शायद यही परम्परा का अनुसरण करते हुए हमारे माननीय जनता द्वारा चयनित नेता लोग हर आतंकवादी हमले के बाद शहीद हुए जवानो की मौत के उपरांत एक बैठक करते हैं ! जैसे हाल ही में हुए हमले के बाद एक उच्चस्तरीय बैठक का आयोजन किया गया ! अब इस बैठक का नाम उच्चस्तरीय बैठक ही क्यों रखा गया इसकी तह तक पहुँचने का प्रयास किया तो मालूम पड़ा ये क़ि इस बैठक में उच्च स्तर के लोग ही शामिल हो सकते हैं इसलिए इसका नाम उच्चस्तरीय बैठक रखा गया ! इस बैठक में भी मान मनुहार की रस्म होती हैं बस थोड़ा सा वो उच्च स्तर का फ़र्क रहता हैं इसमे चाय बीड़ी सिगरेट की जगह कोफ़ी कोल्ड ड्रिंक नाश्ता इत्यादि रहता हैं ! ये जानने और समझने का प्रयास अभी भी जारी है क़ि वो लोग किस विषय में उच्च स्तर के हैं ! अब आता हूँ अपने सटीक विषय पर आख़िर कब तक ये बैठके चलती रहेगी और कब तक ये बैठके करनी पड़ेगी ? आज के इस ट्वेंटी ट्वेंटी युग में ये राहुल द्रविड़ वाली रक्षात्मक क्रिकेट कब तक खेली जाएगीं ! जब दुश्मन हम पर यकायक हमला करते हैं हमारे जवान शहीद हो जाते हैं और हम उनकी तेज बाउंसर उछाल वाली गोलियों और बमों के धमाकों से बचने का प्रयास करते हैं ! कुछ समय तक टुक टुक करने के बाद आख़िर कई जवान क्लीन बोल्ड हो जाते हैं ! क्योकि हमारे जवानो को अभ्यास तो करवाया जाता हैं ट्वेंटी ट्वेंटी का और मैदान पर जब शॉट मारने की बारी आती हैं तब बोल दिया जाता हैं रक्षात्मक खेल खेलो ! आख़िर ऐसी कप्तानी में हमारे जवान कब तक हारते रहेंगे ? हमला होने के बाद बैठक तो हर बार होती हैं कभी हमला हुए बिना सामान्य परिस्थिति में अगर बैठक करले जिसमे हमारे जवानो को बोल दिया जाएँ क़ि अब तुम करो हमला सोए हुए दुश्मनों पर और ले लो अपने शहीद हुए भाइयों के कीमती लहू का बदला तब शायद मरणोपरांत बैठक करने की नौबत ही ना आए हमारे नेताओ को और हमारे जवानो का ट्वेंटी ट्वेंटी अभ्यास कितना जबरदस्त हैं पूरी जनता को देखने मिल जाएँ ! जाने कितने अरबो की राशि अब तक सरकार ने सैन्य और रक्षा सामग्री पर खर्च कर दी ! वही सामग्री जंग खाकर आख़िर रद्दी में बेच दी जाती हैं क्यूकीं उसका उपयोग हम कर ही नही पाते ! आदेशों का पालन करने के चक्कर में कितनी बार हमारे जवान थप्पड़ खा चुके हैं, हर बार उनका खौलता हुआ खून ठंडा करा दिया जाता हैं ! वही आतंकवादी जिन्हे किसी के आदेशों का इंतजार नही होता वो तो गुंगे बहरे होते हैं उनसे बात करने से बेहतर हैं क़ि ये नेता अपनी ज़ुबान पर ताला लगा ले और जवानो के हाथों में लगे ताले खोल दिए जाएँ फिर देखो दुश्मनों के हथियार भारी पड़ते हैं या अपने जवानों के हाथ ! बात रक्षा से ज़्यादा यहाँ जवानों की अस्मिता की हैं आख़िर उन्हे हथियारों की निगरानी रखने के लिए रखा जाता हैं या देश की निगरानी रखने के लिए हथियार दिए जाते हैं ? सब कुछ विपरीत होता हैं अपने यहाँ हिन्दुस्तान में ! जो बात बात से सुलझाई जा सकती हैं वहाँ हम हथियारों से बात करते हैं और जो बात हथियारों से सुलझानी होती हैं वहाँ हम बात करते रहते हैं ! जब दहाड़ने का समय होता हैं तब खामोश रहते हैं और जब खामोश रहना चाहिए तब दहाड़ते रहते हैं ! अगर इसी तरह शहीद होने वाले जवानों की गिनती हम करते रहेगे तो वो दिन दूर नही जब सेना में भर्ती होने वाले जवानों की संख्या शून्य हो जाएगीं, लोग सेना में भर्ती होने के नाम से दूर भागेंगे ! शहीदों की शहादत पर सिर्फ़ शब्दों की श्रदांजलि देने से कुछ नही होता जब हर शहीद की शहादत पर 100-100 दुश्मनों के शव मिले तब मानूँगा क़ि किसी ने एक सच्चे शहीद को सही श्रदांजलि दी हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
(मुंबई) मो. 08080134259

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