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ग़रीबी की परिभाषा….

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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खुद ही खुद में रहने वालो, बाहर की तस्वीर देखो !
ग़रीबों की बदहाली देखो , दर्द से कराहती पीर देखो !

चश्मा महँगा उतारकर , औरो का नयन नीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो, बाहर की तस्वीर देखो !

चुभती हैं शूले भूख से कितनी, खुद कलेजा चीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो, बाहर की तस्वीर देखो !

गहरा कितना घाव तानों का, लेकर सीने पर तीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

रूलाती कितनी बेवशी , डालकर पाँवों में जंजीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

क्या होती कपड़ों की कीमत, सर्दी में सिकुड़ता शरीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

चिंता से सुलगती काया कितनी, माथे पर आयी लकीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

फिर भी कितनी धीर धरते , होकर कभी तुम अधीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

मन अपना हैं पर धन नही , ना मानो अपनी जागीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

खुद को इंसान कहो, नाम ना दो खुद को अमीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

आज तुम्हारी कल उनकी , बदलेगी एक रोज तकदीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

रह लो महलों में अभी चाहे, जाना कंधो पर हो फकीर देखो !
खुद ही खुद में रहने वालो , बाहर की तस्वीर देखो !

जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259

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