- 49 Posts
- 48 Comments
आजकल एक पंक्ति जो सामान्य सी हो गयी हैं वो हैं “आतंकी का कोई धर्म नही होता” ! कहने वाले यूँ ही बस कह जाते हैं और सुनने वाला यूँ ही बस सुन लेता हैं आख़िर कहना और सुनना ही तो हम हिंदुस्तानियों का आधुनिक दौर में काम रह गया हैं बाकी तो हम करते भी क्या हैं ! बात को थोड़ा लंबा खींचते हुए इस पंक्ति पर थोड़ी सी बहस में भी करना चाहूँगा अपनी समझ के अनुसार ! पहली बात तो ये हैं भैया की वैसे तो धर्म हर आदमी का होता हैं मेरा भी एक धर्म हैं आपका भी एक धर्म हैं ! लेकिन सोचने और समझने की बात ये हैं कि धर्म की विधमानता कब तक होती हैं ? मेरे अनुसार जब तक आदमी अच्छाई पर चलता हैं ईमान से रहता हैं अच्छे कर्म करता हैं और सत्य के मार्ग पर चलता हैं तब तक ही उसका कोई धर्म होता हैं बाकी तो धर्म का धोंस भले ही कोई दिखाता हो लेकिन धर्म होता नही हैं ! धर्म वही विधमान होता हैं जहाँ अच्छी सोच और अच्छे विचारों का आवागमन हो ! अभिप्राय ये हैं कि धर्म गंदी जगह कभी भी रहता नही हैं उसे तो रहने के लिए सॉफ सुथरी जगह चाहिए वरना धर्म तो कब का ही 9-2-11 मतलब छू मंतर हो जाता हैं ! अब ये भी सॉफ कर देता हूँ कि धर्म का मतलब हिंदू मुस्लिम सिख इसाई आदि शब्दों से नही लेना चाहिए क्यूकीं ये तो मात्र धर्म के छोटे छोटे हिस्से हैं बाकी असली धर्म तो एक ही हैं जिसकी परिभाषा ना तो मैं जानता हूँ और ना ही आप जानते हैं क्यूकीं कभी किसी किताब में इसकी सही परिभाषा किसी ने दी ही नही ! सबने वही लिखा जो उसका अपना धर्म बोलता हैं सबने संकुचित परिभाषा ही बताई आख़िर कभी जानने की कोशिश भी तो नही की कि धर्म एक समूह का नाम हैं या एक सदमार्ग का नाम हैं ! अब बात आती हैं आतंकी के धर्म की तो अब आप ही समझ गये होंगे कि जो आदमी आतंकवाद फैलाता हैं, मानव की बलि देता हैं ऐसे आदमी के धर्म के बारे में सोचना भी अधर्म हैं ! जिनका कोई माई बाप नही होता उनका धर्म क्या होगा ! धर्म तो उसी दिन छू मंतर हो गया जिस दिन उन्होने इस आतंकवाद के रास्ते पर पहला कदम रखा ! वैसे भी धर्म इंसानो का होता है शैतानो का कोई धर्म नही होता ! धर्म तो बेचारा धीरे धीरे दबे पाँव ही खिसक रहा हैं इस दुनिया से ! जब ईमान सचाई और अच्छाई बची ही नही तो धर्म का यहाँ काम ही क्या ! धर्म क्या बेचारा आतंकवादी के अंदर बैठा बैठा शवों की गिनतिया करेगा कि ले भाई 100 मार दिए आज तो ! हम लोग यहाँ आतंक के धर्म पर चर्चा करते रहेंगे और वो लोग रोज बस्तियों को शमशान में तब्दील करते रहेंगे जब तक हम उनके धर्म का पता लगाएँगे तब तक हम अपना धर्म भूल जाएँगे ! अगर मान लो जैसे तैसे करके उनके धर्म का पता लगा भी लिया तो क्या हो जाएगा हमे क्या आतंकवादियों के घर अपनी बेटियाँ ब्याहनी हैं जो हम सारे काम धंधे छोड़कर उनके धर्म का पता लगाने चले हैं ! उनके धर्म का पता लगाने से पहले अगर हम खुद के धर्म का पता लगा ले तो बेहतर होगा बाकी तो बस दुनिया चल ही रही हैं और चलती ही रहेगी ! हम से पहले बहुतों ने पता किया हैं आतंकवाद के धर्म का बस किया नही हैं तो उनका कोई पक्का इलाज ही नही किया हैं वरना कोई कसाब को ना तो बिरयानी खिलानी पड़ती और ना किसी की गवाही दिलानी पड़ती ! खैर जो भी हैं लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी ये आतंकवादी भाइयों की बदौलत मीडिया का धंधा दनादन चल रहा हैं ! रोज रोज का मसाला आख़िर ये लोग ही बटोरते हैं मीडिया के लिए ! अब ज़्यादा बोलूँगा तो मीडिया बुरा मान जाएगा आख़िर आजकल सच्चे शब्द चुभते बहुत हैं लोगो को ! भूलवश हुई किंतु परंतु के लिए क्षमायाचना !
जितेंद्र हनुमान प्रसाद अग्रवाल “जीत”
मुंबई.मो. 08080134259
Read Comments