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दिल्ली ने क्या चुन लिया ?

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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अक्ल के अमीरों ने कैसे अक्ल के कंगाल को चुना
या थे नींद में गहरी या अंधेरे में “केजरीवाल” को चुना !

शैतानो के शोर से जहाँ सहमी थी दिल्ली की गलियाँ
वहाँ शांति की खातिर जनता ने बड़े बवाल को चुना !

“निर्भया” जैसी कली को नोचा था जहाँ इंसानी कुत्तों ने
वहाँ फूलों की हिफ़ाज़त में चुभते कांटों की ढाल को चुना !

निहार रही थी नम आँखें जहाँ विकास की बारिश को
वहाँ बारिश की चाहत में पंचवर्षीय अकाल को चुना !

बेसूध थी बस्तियाँ जो बदनसीबी की बेवसी के आगे
दिया तकदीर ने मौका तो बद से बदतर हाल को चुना !

हास्यास्पद हरकतों का नृत्य “मोदी राग” के संग संग
मतों की बहुतायत से हास्य अभिनेता कमाल को चुना !

खुद की ज़िम्मेदारियों का ज़िक्र तक नही ज़रा भी
ढूँढना था जबाब वहाँ खुद एक जटिल सवाल को चुना !

ज़रूरत थी जहाँ चौड़ी चादर की दिल्ली की देह ढकने
जाने किस बहकावे में आकर लोगो ने रुमाल को चुना !

जहाँ प्रज्वलित हुआ भारत दिवाली के दीप सा दुनिया में
वहीं दिल्ली ने जाने क्यूँ रंग बिरंगी होली की गुलाल को चुना !

बढ़ा रहे हैं लोग “जीत” जहाँ सीढ़ियाँ अंबर की ओर
वही नित धरती में धँसने दिल्ली ने पाताल को चुना !

लेखक:- जितेंद्र हनुमान प्रसाद अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो.08080134259
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