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जैसा कि मुझे अँग्रेज़ी कम समझ आती हैं सो सुबह सुबह हिन्दी समाचार पत्र पढ़ रहा था ..पढ़ते पढ़ते यू ही एक आधुनिक अदभुत और अनुपम शब्द “लिव इन रिलेसनसीप” से आमना सामना हो गया …एक बार की तो खुद पर हँसी आई लेकिन कुछ ही देर में खुद पर गुस्सा आने लगा क़ि मुंबई जैसी फिल्म नगरी में ७ साल रहकर भी मैं ये शब्द की महिमा नही जानता हूँ जहाँ पर सबसे ज़्यादा लोग रहते हैं ये “लिव इन रिलेसनसीप” में…साथ ही साथ थोड़ा गुस्सा हमारे वो हिन्दी वाले गुरुजी पर भी आया जिन्होने हमे ये पावन शब्द से रूबरू नही करवाया कभी.. जिस प्रणाली में लड़का लड़की शादी से पहले एक साथ रह सकते हैं..खेर ये शब्द खास कर फिल्मी दुनिया और रंगीन दुनिया के लोगो के लिए हैं…अपने जैसे लोग तो वैसे भी जिंदगी भर रिलेसनसीप (रिश्तों) में ही रहते हैं….रिश्ते भी सिर्फ़ रिश्ते नही सच्चे रिश्ते होते हैं…ना की रंगीन दुनिया के लोगो की तरह के रिश्ते जिसमे प्यार होने से पहले ब्रेक अप हो जाता हैं…शादी होने से पहले डाइवोर्स हो जाता हैं….हम भारतीय लोग भी बड़े अविष्कारक लोग हैं ज़रूरत के हिसाब से हर चीज़ का अविष्कार कर लेते हैं अब ऐसे तो शादी से पहले लड़का लड़की को साथ रहने नही देते और रहे भी तो कोई पूछे तो क्या जबाब दे इसलिए हमने ज़रूरत मुताबिक ये “लिव इन रिलेसनसीप” प्रणाली का अविष्कार कर लिया…अब कोई पूछता हैं तो बोलते हैं कि “लिव इन रिलेसनसीप” में रहते हैं तो कितना अच्छा लगता हैं सुनने में…कोई जाने बाकी शादीशुदा लोग तो साथ में बिना रिश्ते के ही रहते हैं….अगर ये प्रणाली का अविष्कार नही हुआ होता और कोई लड़का लड़की ऐसे ही साथ में रहते तो लोग बिना शादी के पूरे शहर में से बारात निकाल देते…खेर जो भी हैं अगर इसी तरह ज़रूरत मुताबिक अविष्कार होते रहे तो वो दिन दूर नही जब इंसान इस दुनिया में दूर दूर तक नज़र नही आएँगे जिधर देखोगे उधर रोबोट ही रोबोट मिलेंगे…अगर हमारी युवा पीढ़ी इसी तरह विकास की और अग्रसर होती रहेगी तो ज़रूर एक ना एक दिन हिन्दुस्तान और अमेरिका में कोई फ़र्क नही रहेगा..
लेखक- जितेंद्र हनुमान प्रसाद अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो.08080134259
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