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बड़ी मुश्किल हैं !

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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चुप रहो तो चोर लगते हैं कुछ करे अगर तो जुमलेबाजी लगती हैं
खुद की करनी अच्छी लगती हैं दूजे की नियत में खराबी लगती हैं !!

मरे अगर कही मक्खी भी तो रोते हैं लोग आँसू भर भर तालाब झूठे
मोदी अकेला दोषी लगता हैं निर्दोष बाकी सारी आबादी लगती हैं !!

बेटा राहुल जाता हैं घर परिजनों के शोक प्रकट करने तो
अतीत भूल जाते हैं लोग मदर टेरेसा सोनिया गाँधी लगती हैं !!

तक़ाज़ा करते हैं लोग ऐसे रोज रुपये १५ लाख का
वर्षो पुरानी कोई इनकी मोदी से उधारी बाकी लगती हैं !!

भर भर तिजोरी जो मालामाल हुए वो दूध धुले लगते हैं
उपहार मिली सूट महँगी मोदी की उनको दागी लगती हैं !!
उनको असहिष्णुता दिखती हैं यहाँ जो राजा हिन्दुस्तानी थे कभी
सोच कर बोले भी क्यूँ कोई, बोलने की जो सबको आज़ादी लगती हैं !!

आतंक की परिभाषा वो जानती हैं जिनकी साड़ियाँ सफेद हुई हैं
नासमझ वो लोग हैं जिनको बेटी बहन इशरत जैसी आतंकवादी लगती हैं !!

रोहित वेमूला नायक लगता हैं जो खुद हार गया जिंदगी से
गुमनाम हनुमंथप्पा हैं कहीं , बेकार उन्हे भगतसिंह की फाँसी लगती हैं !!

दाल सब्जियाँ महँगी लगती हैं जिन्हे किसान पसीना पल पल सिंचता हैं
महान वो गणितज्ञ लोग हैं जिनको सस्ती बोतल शराबी लगती हैं !!

कटते हैं जाने लोग कितने नित धर्म की तलवार से
राजनीति की आड़ में सीमा पर रोज जान की बाजी लगती हैं !!

“जीत” तमाशा-ए-दुनिया देखकर खुदा भी गमगीन हैं
राम रहीम जब अलग करता हैं कोई चोट दिल पर काफ़ी लगती हैं !!
लेखक:- जितेंद्र हनुमान प्रसाद अग्रवाल “जीत”
मुंबई मो. 08080134259
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