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क्यों बर्दाश्त खुदा तू जुर्म को चुपचाप करता हैं !
आख़िर क्यों तेरा इंसान हर रोज पाप करता हैं !
हंसते हैं तुझे धिक्कारने वाले और रोता हैं वही
जो हर पल तेरा जाप करता हैं !
क्यों पनपाता हैं तू उसी को जो होकर तेरा
तुझपे ही रोज आघात करता हैं !
जिसने देखी नही ग़रीब की झोंपड़ी कभी
बैठा महल में वो दया धर्म की बात करता हैं !!
नाम तेरा लेकर माँगने वाले को रोटी भी नही
आख़िर क्यों अन्याय तू ग़रीबों के साथ करता हैं !
क्यों बच्चे अक्सर उसके भूखे सो जाते हैं
जो मंदिर में सेवा तेरी दिन रात करता हैं !
गुनाह अमीर का और सज़ा ग़रीब को
क्या बैठा उपर तू यही इंसाफ़ करता हैं !
क्या लगता हैं आख़िर वो मूर्तिचोर तुम्हारा
जो तेरी ही मूरत पर हाथ सॉफ करता हैं !
क्यों सज़ा देता नही तू चोरो गुनाहगारों को
क्यों जानते हुए हर बार उन्हे माफ़ करता हैं !
क्यों खामोश बैठा हैं जबाब क्यूँ देता नही
क्यों मेरे सारे सवालों को नज़र अंदाज करता हैं !
रो देगा तू भी आकर देख हालात यहाँ के
बहुत बुरी हैं ये दुनिया जिस पर तू नाज़ करता हैं !
लेखक:- जितेंद्र हनुमान प्रसाद अग्रवाल “जीत”
मुंबई
मो. 08080134259
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